भारत ने ठुकराया बेन स्टोक्स का ड्रॉ का प्रस्ताव

परिचय:

क्रिकेट केवल एक खेल नहीं, भावनाओं, रणनीतियों और आत्मविश्वास का संगम है। टेस्ट क्रिकेट में जब मुकाबला पांचवें दिन तक खिंचता है और परिणाम अधर में लटका रहता है, तब कप्तान के फैसले पूरे मैच का रुख बदल सकते हैं। इंग्लैंड और भारत के बीच मैनचेस्टर के ओल्ड ट्रैफर्ड मैदान पर खेला गया चौथा टेस्ट मैच इसका सटीक उदाहरण है। इस मैच के अंतिम दिन इंग्लैंड के कप्तान बेन स्टोक्स ने भारत को ड्रॉ का प्रस्ताव दिया, जिसे भारतीय बल्लेबाज रविंद्र जडेजा और वॉशिंगटन सुंदर ने ठुकरा दिया। यह निर्णय भारत के आत्मबल, जुझारूपन और जीत की मानसिकता को दर्शाता है।

पृष्ठभूमि:

इस टेस्ट मैच से पहले भारत सीरीज में पिछड़ रहा था। इंग्लैंड 2-1 से आगे था और यह मैच उसके लिए सीरीज जीतने का सुनहरा अवसर था। वहीं, भारत के लिए यह मुकाबला करो या मरो जैसा था। चौथे टेस्ट में इंग्लैंड ने पहले बल्लेबाजी करते हुए बेन स्टोक्स के शानदार शतक की मदद से मजबूत स्कोर खड़ा किया। जवाब में भारत की शुरुआत डगमगाई, लेकिन दूसरे इनिंग्स में भारतीय बल्लेबाजों ने जबरदस्त वापसी की।

बेन स्टोक्स का प्रस्ताव:

चौथे टेस्ट के पांचवें दिन इंग्लैंड की टीम ने समय की स्थिति और मौसम को देखते हुए मैच ड्रॉ घोषित करने का प्रस्ताव भारतीय टीम को दिया। कप्तान बेन स्टोक्स मैदान पर मौजूद रविंद्र जडेजा और वॉशिंगटन सुंदर के पास पहुंचे और हाथ मिलाकर मैच समाप्त करने की इच्छा जताई। यह क्रिकेट में एक असामान्य परंपरा है, जब दोनों टीमें आपसी सहमति से मैच को ड्रॉ घोषित करती हैं।

जडेजा और सुंदर का फैसला:

जडेजा उस समय 89 रन पर बल्लेबाजी कर रहे थे, जबकि वॉशिंगटन सुंदर भी 70 के करीब थे। दोनों ने न केवल व्यक्तिगत मील के पत्थर को ध्यान में रखा, बल्कि टीम की स्थिति का भी विश्लेषण किया। उन्होंने महसूस किया कि टीम अभी भी जीत के लिए खेल सकती है या कम से कम इंग्लैंड को पूरी तरह से बैकफुट पर ला सकती है। ऐसे में उन्होंने ड्रॉ प्रस्ताव को ठुकरा दिया और खेलने का फैसला किया।

मैच का मोड़:

भारतीय टीम ने 137 रनों से पिछड़ने के बाद जबरदस्त वापसी की। शुभमन गिल और केएल राहुल के बीच 188 रनों की साझेदारी ने मैच में जान डाल दी। गिल ने 103 और राहुल ने 90 रनों की पारी खेली। इसके बाद जडेजा और सुंदर की साझेदारी ने इंग्लिश गेंदबाजों को थका दिया। जडेजा ने शानदार शतक (107*) लगाया और सुंदर 92* पर नाबाद रहे। यह साझेदारी भारत के आत्मबल और बल्लेबाजी गहराई का प्रतीक बनी।

बेन स्टोक्स की प्रतिक्रिया:

जैसे ही जडेजा और सुंदर ने ड्रॉ प्रस्ताव ठुकराया, बेन स्टोक्स कुछ हद तक निराश नजर आए। उन्हें लगा था कि मौसम और समय की सीमा को देखते हुए भारत सहमति दे देगा। लेकिन भारतीय खिलाड़ियों के रवैये ने इंग्लैंड को यह संदेश दिया कि भारत अब हर हाल में मुकाबला करेगा।

मीडिया और विशेषज्ञों की प्रतिक्रिया:

क्रिकेट विशेषज्ञों ने जडेजा और सुंदर के फैसले की सराहना की। भारत के पूर्व कप्तान राहुल द्रविड़ ने कहा, “यह भारतीय टीम के मानसिक रूप से मजबूत होने का प्रमाण है। यह दिखाता है कि खिलाड़ी केवल परिणाम नहीं, बल्कि गर्व और सम्मान के लिए खेलते हैं।”

इंग्लैंड के पूर्व खिलाड़ी माइकल वॉन ने भी कहा, “भारत ने ड्रॉ प्रस्ताव ठुकराकर खेल भावना का बेहतरीन उदाहरण पेश किया। यह टेस्ट क्रिकेट की असली आत्मा है।”

भारत की मानसिकता में बदलाव:

एक समय था जब भारतीय टीम विदेश में रक्षात्मक खेल को अपनाती थी। लेकिन अब परिस्थिति बदल चुकी है। अब भारत जीत के लिए खेलता है, चाहे हालात जैसे भी हों। यह बदलाव कोचिंग स्टाफ, कप्तान और खिलाड़ियों की सोच में आया बदलाव दर्शाता है।

सीरीज पर प्रभाव:

यह ड्रॉ भारत के लिए सीरीज में वापसी का मौका बन गया। अब भारत 2-1 से पीछे है और पांचवां टेस्ट निर्णायक बन गया है। अगर भारत अंतिम टेस्ट जीतता है, तो सीरीज 2-2 से बराबर हो जाएगी, जो कि मनोवैज्ञानिक रूप से इंग्लैंड के लिए एक झटका होगा।

टेस्ट क्रिकेट की खूबसूरती:

यह मैच इस बात का प्रमाण है कि टेस्ट क्रिकेट अभी भी सबसे चुनौतीपूर्ण और रोमांचक प्रारूप है। इसमें मानसिक दृढ़ता, धैर्य, और रणनीति की आवश्यकता होती है। पांचवें दिन ड्रॉ प्रस्ताव का इनकार और फिर नाबाद शतक—यह सब दर्शकों के लिए एक अद्भुत अनुभव रहा।

निष्कर्ष:

भारत द्वारा बेन स्टोक्स का ड्रॉ प्रस्ताव ठुकराना केवल एक निर्णय नहीं, बल्कि एक सोच का प्रतीक था। यह दर्शाता है कि भारतीय क्रिकेट टीम अब परिस्थितियों से नहीं डरती, बल्कि उन्हें चुनौती देती है। रविंद्र जडेजा और वॉशिंगटन सुंदर की जोड़ी ने न केवल भारतीय क्रिकेट प्रशंसकों का दिल जीता, बल्कि टेस्ट क्रिकेट के मूल्यों को भी उजागर किया। यह मुकाबला आने वाली पीढ़ियों को यह सिखाएगा कि आत्मविश्वास, धैर्य और इच्छाशक्ति से किसी भी परिस्थिति को बदला जा सकता है।

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